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कालसर्प योग ?

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  जय श्री राम जी  आज हम जानेंगे काल सर्प योग के बारे  में>  प्राचीन ज्योतिष शास्त्र में, या ना ही वैदिक शास्त्र में, ना वृहद  पाराशर में,, ना होराशर में,, ना ही लघु पाराशर   में,,  कालसर्प योग का वर्णन  कही  भी नहीं मिलता, परन्तु कालान्तर  में  हुई ज्योतिषियों के अभिज्ञान की वृद्धि के कारण  नया उद्भव  ये        योग  कहा जा सकता है   राहु से 7 वे स्थान पर यदि केतु  विधामान  हो लगन कुंडली में  ओर ​ सभी अन्य ग्रह किसी भी एक तरफ हो तो कालसर्प योग मन जाता है,,   इसके साधरण प्रतीक ये है  सभी कामों का बिगाडना,,  निरंतर प्रयास करते रहने पर भी विफ़लता मिलना,, नकारात्मक विचार,,   पदावनति, जीवन में परिवर्तन स्वीकार्य नहीं होना  है,, सभी शुभ कार्य मे विलम्भ  होना  ,, आदि,, पूजन, विधान, उपाय,, > शिव जी की पूजा करना निरंतर रूप से  दूध से अभिषेक करना,, सप्तधान्य का दान और कबूतरों को दाना डालना, चिंटियो को मीठा पीस...